17 माह बाद आजाद हुई बेटी, खुली हवा में ली सांस
17 माह बाद आजाद हुई बेटी, खुली हवा में ली सांस
- पालनहार माता-पिता को देख दौड़ी बेटी तो मां ने आंचल में छिपाया
- हाईकोर्ट ने कहा- जुदा करना आसान, यशोदा जैसी मां दे पाना मुश्किल
मां की ममता केे आगे दुनिया की बड़ी से बड़ी ताकत झुक जाती है। आगरा में ऐसा ही कुछ हुआ। 17 महीनों से अनाथों की तरह रह रही नौ साल की बच्ची फिर से अपनी पालने वाली मां से जा मिली। तड़प, विछोह और लंबे इंतजार केेे बाद आखिरकार हाईकोर्ट के आदेश पर 17 माह बाद बेटी आजाद हो गई। उसने लंबे समय बाद खुली हवा में सांस ली। तमाम कानूनी पेचों में फंसी इस कहानी का सुखद अंत हुआ। बाल गृह में रह रही बच्ची की कस्टडी की जंग लड़ रही एक पालनहार मां को आखिरकार हाईकोर्ट से राहत मिली है। 17 महीने तक वह सोशल इंवेस्टीगेशन जांच के चलते वह अपनी पाली हुई बेटी से दूर रह रही थी। हाईकोर्ट ने बच्ची की सुपुर्दगी उसकी पालनहार मां को दे दी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केवल बच्ची की कस्टडी उसकी पालने वाली मां को सौंपी बल्कि जल्द से जल्द गोद लेने की वैधानिक प्रक्रिया पूरी करने के आदेश भी दिए। हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौराना अपना फैसला यशोदा के पक्ष में सुनाया था। कोर्ट ने बच्ची की सुपुर्दगी उसी यशोदा मां को दे दी। बाल गृह के बाहर अपने पालनहार माता-पिता को देखा तो दौड़ी चली आई। उनसे लिपट गई। मां ने भी उसे आंचल में समेट लिया। पिता की आंखों से आंसू बह रहे थे। मासूम बेटी अपनी नन्हीं उंगलियों से उनके आंसू पोछ रही थी। इस अनोखे मिलन को देखकर हर कोई भावुक हो गया। आइए जानते इस नन्ही परी की कहानी जिसने बहुत छोटी सी उम्र में बहुत बड़े दर्द सहे, जन्म देने वाली मां ने छोड़ा तथा पालनहार मां पर सिस्टम ने पाबंदी लगा दी।
झाड़ियों में लावारिश मिली मासूम
यह कहानी उस मासूम बच्ची की है। जिसे जन्म के बाद ही जन्म देने वाली मां ने छोड़ त्याग दिया। कोई उसे झाड़ियों में फेंक गया था। 28.11.2014 की सर्द रात में फरूखाबाद रहने वाली अंजली नामक किन्नर अपनी टोली के साथ नेग मांगकर बापस लौट रही थी। तभी रास्ते में झाड़ियों में बच्चे के रोने की आवाज सुनी। पहले तो उन्होंने अनसुना कर दिया कि आधी रात में यहां बच्चा कैसे आएगा। बच्चे के रोने की आवाज लगातार कानों में गूंज रही थी। बच्ची के रोने की आवाज सुनी तो उससे रहा नहीं गया। टोली रूकी और आसपास देखा तो झाड़ियों में सफेद कपड़े में लिपटा एक बच्चा रो रहा था। किन्नर ने उस बच्चे को उठा लिया। देखा तो वह एक बच्ची थी। इसके बाद अंजली उस नवजात बच्ची को लेकर अपने गुरू के पास पहुंची। गुरू से कहा कि वह इस बच्ची को पालेंगे। गुरू ने कहा कि हम किन्नर बच्चे पैदा नहीं करते हैं और न किसी बच्चे को पालते हैं। इसे कहीं छोड़ आओ। किन्नर की आंखों में बेटी के लिए दर्द था। वह उसे खुद से जुदा नहीं करना चाहती थी। उसके अंदर की ममता हिलोरे ले रही थी लेकिन गुरू के आदेश को नहीं टाल सकती थी। बेटी की जान भी बचना जरूरी था। ऐसे खुले में छोड़ी भी नहीं जा सकती थी। खुले में रहने के कारण बच्ची की तबियत भी बिगड़ रही थी। उसका शरीर नीला पड़ता जा रहा था। किन्नर ने उसे किसी को देने का मन बना लिया। जिससे उसका इ्रलाज और जान बच जाए। किन्नर ने सुबह लगभग पांच बजे टेढ़ी बगिया आगरा की रहने वाली यशोदा (परिवर्तित नाम) महिला का दरवाजा खटखटाया। महिला को नवजात बच्ची सौंपी और उसका पालन पोषण करने को कहा। किन्नर ने महिला से कहा कि बच्ची की जान बचना बहुत जरूरी है। बच्ची को कोई खुले में छोड़ गया है। इसका जन्म कुछ घंटे पहले ही हुआ है। यशोदा ने बच्ची को लेने से इंकार कर दिया। कहा कि उसके पाल पहले से ही चार बच्चे हैं। वह कोई और बच्चा नहीं लेना चाहती है। किन्नर ने खूब कहा लेकिन यशोदा ने इंकार कर दिया। अंत में किन्नर ने बच्ची को जबरन यशोदा की गोद में थमा दिया और यह कहकर चला गई कि पालना हो तो पाल लेना नही तो कहीं फेंक देना।
पिघल गई मां की ममता
किन्नर से मिली कुछ ही घंटों की मासूम बच्ची को यशोदा ने रोते बिलखते देखा तो उसकी ममता पसीज गई और उसने बच्ची को पालने का निर्णय ले लिया। यशोदा ने अपने पति और बच्चों को नवजात के बारे में बताया तो सभी ने सहमति दे दी। सभी ने बच्ची का नाम सृष्टि (परिवर्तित नाम) रखा। सभी ने कहा यही आज से हमारी दुनिया है। किन्नर बच्ची को झाड़ियों से उठाकर लाई थी। इसलिए उसके शरीर पर चोट के निशान थे और वह बहुत कमजोर थी। यशोदा ने सृष्टि को अस्पताल में भर्ती कराया। जहां उसका ईलाज शुरू हुआ। खून की बहुत कमी थी। यशोदा के कहने पर उसके पति ने सृष्टि को अपना खून दिया। तीन साल तक लगातार ईलाज चलता रहा। 24.04.2015 को यशोदा की बेटी की शादी थी। बारात वाले दिन बेटी की तबियत अचानक बिगड़ गई। डाक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए। बारात दरवाजे पर खड़ी थी। उसी समय सृष्टि की नब्ज नाड़ी छूट गए। बेटी के लिए यशोदा दहाड़ मारकर रोने लगी। अन्य परिजन विलाप करने लगे। तभी लगा कि बारातियों को पता चल गया तो बेटी का विवाह रूक जाएगा। ऐसे में यशोदा ने अपने भाई को बच्ची देते हुए कहा कि इसने दम तोड़ दिया है। इसे दफना आओ लेकिन किसी को बताना मत नही ंतो बेटी के हाथ पीले नहीं हो पाएंगे। यशोदा का भाई और भाभी सृष्टि को लेकर चले गए। उन्होंने एक अस्पताल में दिखाया तो उन्होंने कहा कि अभी इसकी सांस चल रही है। उसके आईसीयू में भर्ती कराया। बेटी विदा करने के बाद यशोदा और उसके परिजना सीधे अस्पताल आ गए। उसे जीवनदान मिल चुका था। कुछ समय बाद वह स्वस्थ हो गई। यशोदा ने सृष्टि का बेहतर पालन-पोषण किया। स्कूल में दाखिला कराया। सृष्टि परिवार में सबकी आंखों का तारा बन गई। सृष्टि का जन्मदिन एक उत्सव के रूप में हर साल मनाया जाता था। उस दिन सभी रिश्तेदार और परिचितों को दावत भी दी जाती थी। बच्ची तथा परिवार के सभी सदस्य आपस में भावनात्मक रूप से जुड़े हुए थे।
एक फूल दो माली
सृष्टि की परवरिश बहुत अच्छी हो रही थी। अचानक किस्मत ने एक नया मोड़ ले लिया। सात साल बाद किन्नर की बापसी हुई। उस समय सृष्टि घर के बाहर खेल रही थी। किन्नर ने उसे देखा तो यशोदा से पूछा कि यह लड़की कौन है ? यशोदा ने कहा कि यह वही लड़की है जिसे तुम सात साल पहले दे गई थीं। किन्नर ने कहा कि यह बच गई। यह तो बहुत बड़ी हो गई है। बहुत सुंदर है। तुम्हारा दायित्व पूरा हो गया। अब इसे मुझे दे दो। मैं इसकी परवरिश करूंगी। यशोदा ने कहा कि मैंने बहुत छोटी उम्र से पाला है। अपना खून देकर इसे जीवित रखा है। अब इसे खुद से जुदा नहीं होने दूंगी। किन्नर ने कहा कि ये मुझे मिली थी इसलिए इस पर मेरा हक है। मैं इसे लेकर ही रहूंगी। सृष्टि को लेकर दोनों के बीच झगड़ा हो गया। लड़ झगड़कर किन्नर बापस चली गई। कुछ दिन बाद यशोदा की अनुपस्थिति में किन्नर सृष्टि को उठा ले गया। यशोदा ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। यशोदा की शिकायत पर पुलिस और चाइल्ड लाइन ने सृष्टि को फर्रुखाबाद से मुक्त कराया। सृष्टि को बाल कल्याण समिति के समक्ष प्रस्तुत किया तो सृष्टि ने मां के रूप में यशोदा को पहचाना। काउंसलिंग रिपोर्ट में भी यशोदा के साथ जाने की इच्छा जाहिर की। बाल कल्याण समिति ने कहा कि बालिका ने शुरू से ही यशोदा को मां के रूप में देखा है। दोनों के बीच अटूट संबंध है। बालिका का हित यशोदा के परिवार में ही सुरक्षित है इसलिए सृष्टि को यशोदा के सुपुर्द कर दिया जाए। चाइल्ड लाइन ने सृष्टि को आगरा बाल कल्याण समिति के समक्ष प्रस्तुत किया। बाल कल्याण समिति आगरा ने यशोदा को फिट पर्सन घोषित कर सृष्टि को पालन पोषण के लिए यशोदा को दे दिया। हर 15 दिन बाद फाॅलोअप के लिए बालिका को बाल कल्याण समिति में बुलाया जाता रहा। जहां यशोदा रजिस्टर में हस्ताक्षर करती थी। सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन आठ माह बाद किन्नर ने बाल कल्याण समिति से शिकायत कर दी कि यशोदा किराए के मकान में रह रही है। वह सृष्टि के पालन पोषण में लापरवाही बरत रही है। परवरिश ठीक तरह से नहीं कर रही है। किन्नर की शिकायत पर यशोदा को बाल कल्याण समिति ने बुलाया। कहा कि एक घंटे के लिए सृष्टि को बाल गृह ले आओ। सृष्टि तभी स्कूल से आई थी। यशोदा सृष्टि को लेकर बाल गृह बुलाया। बाल कल्याण समिति ने सृष्टि को राजकीय बाल गृह में निरुद्ध करा दिया गया। यशोदा ने कारण पूछा तो कहा कि किन्नर की शिकायत आई है। शिकायत के निस्तारण के बाद बच्ची दे दी जाएगी। यशोदा ने बहुत विनती की लेकिन किसी ने नहीं सुनी।
बेटी के लिए हर चैखट पर दी दस्तकबेटी के लिए यशोदा जिला प्रोबेशन अधिकारी, विधायक धर्मपाल सिंह तथा महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती बेबीरानी मौर्य से मिली। विधायक तथा मंत्री ने डीएम तथा जिला प्रोबेशन अधिकारी को पत्र लिखे लेकिन पत्रों को तबज्जो नहीं दी गई। बाल कल्याण समिति ने सामाजिक जांच रिपोर्ट के आधार पर पालनहार की आमदनी स्थाई न होने का कारण बताकर बच्ची को सुपुर्दगी में देने से मना कर दिया। बेटी के लिए जिलाधिकारी, एसएसपी, एडीएम सिटी आदि अधिकारियों से मिली। लिखित शिकायती पत्र दिए। मुख्यमंत्री दरबार में भी गुहार लगाई लेकिन कहीं से राहत नहीं मिली। बाल गृह में बेटी से मिलने पर भी पाबंदी लगी। कहा कि किन्नर से एनओसी लाओ। बेटी से मिलने की उम्मीद में यशोदा दिन भर बाल गृह के बाहर धूप में बैठी रही लेकिन उसे मिलने नहीं दिया गया। सृष्टि बाल गृह में रोती तो यशोदा बाहर रोती रहती। आठ आठ घंटे बाल गृह के बाहर इंतजार करके लौट आती लेकिन उसे बच्ची से मिलने भी नहीं दिया जाता था। वह बेटी की एक झलक पाने को बेताब रहती थी। यशोदा कहती कि सरकार ने नारा दिया है कि बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओ। मैंने तो एक बेटी को बचाया भी और पढ़ाया भी फिर मैंने कौन सा गुनाह किया है। जिस पर मुझसे बच्ची छीनकर अनाथालय में बंद कर दी है। सृष्टि में मेरी जान बसती है। मेरी बेटी को आजाद कर दो। बेटी की आजादी को लेकर जिला मुख्यालय और शहीद स्मारक पर धरना दिया लेकिन किसी को तरस न आया। अफसरों के सामने रोई गिड़गिड़ाई। हाथ जोड़कर मिन्नतें कीं। बेटी के लिए न्याय की उम्मीद में हर चैखट पर दस्तक दी लेकिन हर जगह निराशा मिली।
नरेश पारस बने हमराह
जब कहीं से न्याय नहीं मिला तो सामाजिक कार्यकर्ता एक उम्मीद की किरण बनकर यशोदा की जिंदगी में आए। यशोदा ने लिखित अर्जी देकर नरेश पारस से मदद मांगी। नरेश पारस ने न्याय की इस लड़ाई में हर संभव मदद का वादा किया। कहा कि वह यशोदा को बेटी बापस दिलाकर ही दम लेंगे। वह यशोदा के हमराह बन गए। प्रशासनिक अफसरों से मिलकर यशोदा की वेदना को बताया। उन्होंने कहा कि बाल कल्याण समिति के आदेश से बच्चे पर मानसिक नकारात्म प्रभाव पड़ रहा है। उसकी पढ़ाई छूट गई है। बालिक आठ वर्ष से परिवार में रह रही थी। इससे बालिका तथा परिवार का एक दूसरे से भावनात्मक लगाव हो गया। नरेश पारस ने कहा कि किशोर न्याय अधिनियम की मंशा बाल हित को सर्वोपरि रखते हुए बच्चे को परिवार में समेकित कर पुनवासित कराने की है लेकिन यह बालहित के विपरीत है। बालिका का हित प्रभावित हो रहा है। उस पर मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। एक वर्ष बाद बालिका को कानपुर राजकीय बालिका गृह में स्थानांतरित कर दिया जाएगा। जहां से बच्ची के परिवार में समेकित होने की संभावना खत्म हो जाएगी। नरेश पारस यशोदा को लेकर बाल कल्याण समिति आगरा, जिला प्रोबेशन अधिकारी एवं जिलाधिकारी से मिले। बाल कल्याण समिति के आदेश के विरूद्ध डीएम कार्यालय में अपील की। बाल कल्याण समिति से बेटी से मिलने का भी अनुरोध किया लेकिन बाल कल्याण समिति ने कहा कि किन्नर से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेकर आओ तभी बच्ची से मिलने दिया जाएगा।
बाल आयोग के पत्र भी रहे बेअसर
नरेश पारस ने इस प्रकरण से उत्तर प्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षण अयोग को अवगत कराया। लखनऊ स्थित राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के कार्यालय में सदस्य डॉ शुचिता चतुर्वेदी से मुलाकात की। आयोग की सदस्य डाॅ.शुचिता चतुर्वेदी ने जिलाधिकारी आगरा को पत्र लिखकर सृष्टि को फाॅस्टर केयर में सुपुर्द करने को कहा। साथ ही फोन पर बाल कल्याण समिति की अध्यक्ष मोनिका सिंह से बात की तथा बालिका को सुपुर्दगी में देने के लिए कहा। उसके बावजूद भी सृष्टि को यशोदा की सुपुर्दगी में नहीं दिया गया। जिला प्रोबेशन अधिकारी ने बाल कल्याण समिति से पुनर्विचार करने को कहा लेकिन बाल कल्याण समिति ने पुनर्विचार नहीं किया। नरेश पारस के हस्तक्षेप पर यशोदा की व्यथा को मीडिया ने भी मुहिम बनाया। मीडिया का भरपूर साथ मिला। मां की वेदना को प्रमुखता से प्रकाशित किया। इस अभियान में शहरवासियों ने भी कहा कि बच्ची उसकी पालनहार मां को ही मिलनी चाहिए। देश के बड़े चैनलों ने खबर के माध्यम से दिखाया। मां बेटी के मिलन पर किसी ने रूचि नहीं दिखाई।
बेटी की सुपुर्दगी के लिए हाईकोर्ट में याचिका
जब कहीं से कोई न्याय नहीं मिला तो नरेश पारस ने यशोदा के साथ इलाहाबाद हाईकोर्ट की ओर रूख किया। हाईकोर्ट के अधिवक्ता विपिन चंद्र पाल को केस के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने अपने साथी अधिवक्ताओं से विचार विमर्श किया। लगभग आधा दर्जन अधिवक्ताओं ने केस लड़ने की सहमति दी। बच्ची से जुड़े हर दस्तावेज और साक्ष्य को नरेश पारस ने इकट्ठा किया। इलाहाबाद जाकर अधिवक्ताओं के साथ देर रात तक बैठकर विमर्श किया। नरेश पारस द्वारा एकित्रित किए हर साक्ष्य और तथ्य को अधिवक्ता विपिन चंद्र पाल ने याचिका में शामिल किया। उन्होंने अपने वरिष्ठों से मुलाकात कराई केस के बारे में चर्चा की। इस याचिका को अन्य अधिवक्ताओं के साथ बैठकर तैयार कराया गया। हर पहलू को अमल में लाया गया। केस पर आधारित फिल्म मिसेज चटर्जी वर्सेज नार्वे फिल्म देखकर उससे आइडिया लियाा। गहन विमर्श और अध्यन के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई। अधिवक्ताओं के के साथ साथ नरेश पारस हाईकोर्ट की हर सुनवाई में कोर्ट रूम में मौजूद रहे। न्यायालय की प्रक्रिया को बारीकी से देखा।
हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान केस में एक नया मोड़ आ गया। आगरा ट्रांस यमुना कॉलोनी निवासी एक दंपत्ति ने अपने प्रार्थना पत्र में दावा किया कि वह बाल गृह में निरुद्ध बालिका सृष्टि के जैविक माता पिता हैं। 18 नवंबर 2015 को उनकी बेटी कोई पलंग से कोई उठा ले गया था। जिसकी थाना एत्माद्दौला में रिपोर्ट दर्ज है। उसे किन्नर उठा ले गए थे। इस पर कोर्ट ने डीएनए टेस्ट करने का आदेश दे दिया और त्वरित अनुपालन कराने को कहा। साथ ही दोवदार दंपत्ति को भी प्रतिवादी के रूप में शामिल करने के आदेश दिए। कहा कि उनको हाईकोर्ट में शपथपत्र भी दाखिल करना होगा। हाईकोर्ट के आदेश का अनुपालन डीएम के द्वारा कराया जाएगा। जबकि यशोदा के मुताबिक किन्नर उसे बालिका 28 नवंबर 2014 की तड़के 4-5 बजे के बीच दे गया था। वह खून से सनी हुई थी। दावेदार और उनकी बेटी के जन्म में एक साल का अंतर है। गस्ती तामील कराने की जिम्मेदारी अधिवक्ता विपिन चंद्र पाल को दी गई। साथ ही हाई कोर्ट ने आदेश जारी किया कि पालनहार यशोदा मां सृष्टि से शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से मिल सकेगी। इसके लिए जिला प्रोबेशन अधिकारी ने मंगलवार सुबह 11 बजे का समय निधार्रित किया।
मुंह जबानी याद थे घर के नंबर
हाईकोर्ट के आदेश पर डीपीओ ने हर मंगलवार को मुलाकात समय निर्धारित किया है। मंगलवार की सुबह यशोदा नरेश पारस के साथ बाल गृह पहुंची। जहां उसकी मुलाकात बेटी से कराई गई। मां को देखकर बेटी दौड़ी चली आई और उससे लिपट गई। मां ने भी प्यार से गोद में भरकर दुलार किया। नरेश पारस ने बच्ची से उसके माता-पिता के बारे में पूछा तो उसने सभी के नाम और मोबाइल नंबर बता दिए। उसे सभी सदस्यों के मोबाइल नंबर मुंह जबानी याद हैं। उसने घर के हर सख्श की जानकारी दी। मां से मिलकर बहुत खुश थी। कहां अगली बार बाबूजी को साथ जरूर लाना। उनको बहुत दिनों से देखा नहीं है। उनकी बहुत याद आती है। डीपीओ ने कहा कि उन्हें मत लाना उनको मिलने की अनुमति नहीं है।
रह गई जन्मदिन मनाने की हसरत अधूरी
सृष्टि का जन्मदिन 28 नवंबर को मनाया जाता था। यशोदा बाल गृह में बेटी का जन्मदिन मनाना चाहती थी। बेटी के जन्मदिन पर उससे मिलने की उत्सुकता में पालनहार मां रात भर सो न सकी। उसके बचपन की यादों में खोई रही। उसे इंतजार था कि कब रात खत्म हो और सुबह अपनी बेटी को गले लगाकर उसके माथे को चूमे लेकिन पांच घंटे के लंबे इंतजार के बाद भी बेटी से मुलाकात नहीं हो सकी। अंत में रोते-रोते घर बापस लौट गई । फोटो सामने रखकर केक काटना पड़ा। 15 महीने से बाल गृह में निरुद्ध बालिका मंगलवार को नौ साल की हो गई। बेटी के साथ बिताए आठ सालों का एक एक पल उसे याद आ रहा था। मां बेटी के मिलन का समय मंगलवार को पूर्वाह्न 11 बजे जिला प्रोबेशन अधिकारी द्वारा निर्धारित किया गया था। यशोदा सुबह 9ः30 बजे घर से बाल गृह के लिए निकल गई थी। रास्ते में उसे चार स्थानों पर ऑटो बदलने पड़े। जिसके चलते वह लेट हो गई। वह करीब 11ः30 बजे चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट नरेश पारस के साथ बाल गृह पहुंची लेकिन तब तक पुलिस की टीम बालिका को डीएनए टेस्ट करने के लिए ले जा चुकी थी। यशोदा बेटी के लौटने का 4ः30 बजे तक इंतजार करती रही। बाल गृह के दरवाजे पर बैठकर बेटी की यादों में खोई रही। उसका कहना था कि वह लंबे समय बाद आज अपनी बेटी से मिलेगी। रविवार को हुई मुलाकात में बेटी ने उससे कहा था की मम्मी मुझे अपने साथ ले चलो। तब यशोदा ने उससे वादा किया था कि वह मंगलवार को आकर उसका जन्मदिन मनाएगी लेकिन बेटी का जन्मदिन नहीं मना सकी। बेटी के जन्मदिन पर केक लेकर बाल गृह गई। वह अपनी बेटी का नौंवा जन्मदिन मनाना चाहती थी लेकिन उसे बच्ची से मिलने तक नहीं दिया गया। दिनभर इंताजार के बाद घर बापस लौट आई। अंत रात में आंसुओं के बीच रोते रोते घर में केक के सामने बेटी की तस्वीर रखकर जन्मदिन मनाया। परिवार का हर सख्श दुखी थी। जन्मदिन वाले दिन घर का हर सदस्य मायूस था। बेटी की याद में किसी ने खाना भी नहीं खाया। किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि कभी फोटो सामने रखकर केक काटना पड़ेगा।
प्रतिवादी से कराया सम्मन तामील
हाईकोर्ट के अधिवक्ता विपिन चंद्र पाल प्रतिवादी दंपत्ति को गस्ती सम्मन तामील कराने ट्रांस यमुना कॉलोनी आगरा गए लेकिन आसपास के लोगों ने पता बताने से इंकार कर दिया। ऐसे में अधिवक्ता ने मामले की हाईकोर्ट में पैरवी कर रहे नरेश पारस को बुलाया। उनके साथ पुलिस से सहयोग लेने के लिए थाना एत्माद्दौला पहुंचे। अधिवक्ता ने हाईकोर्ट का सम्मन तामील कराने को सहयोग मांगा जिस पर थाना प्रभारी ने कहा कि पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों से आदेश कराकर लाइए तब पुलिस द्वारा सहयोग किया जाएगा। अधिवक्ता ने बताया कि किसी भी सम्मन को जारी करने के लिए पुलिस का होना आवश्यक है। सीआरपीसी में इसका स्पष्ट उल्लेख है। उन्होंने सीआरपीसी की किताब के लिए भी कहा लेकिन थाने में सीआरपीसी की किताब नहीं मिली काफी देर जिरह करने के बाद थाने के एक सिपाही को प्रतिवादी के घर की निशानदेही के लिए भेजा गया। इसके बाद सम्मन तामील कराया गया तथा याचिका सत्यापित प्रति प्रतिवादी को दी गई। इस दौरान अधिवक्ता और उनके सहयोगी अचल कबीर के साथ नरेश पारस भी मौजूद रहे।
सीडब्लूसी ने कराया दावा
सम्मन तामील कराने आए अधिवक्ता विपिन चंद्र, नरेश पारस और मीडिया के सामने दावेदार दंम्पति ने कहा कि बाल गृह में निरुद्ध बालिका हमारी बेटी नहीं है। उससे बेटी की फीलिंग नहीं आती है। हमारी बेटी 2015 में लापता हुई थी जबकि यह पालनहार मां को 2014 में मिली थी। एक साल का अंतर है। यह हमारी बेटी नहीं हो सकती है। दंपति के परिजनों ने साफ इंकार कर दिया कि ये हमारी बेटी नहीं हो सकती है। हमें तो बाल कल्याण समिति ने बुलाकर कहा था कि यह आपकी बेटी हो सकती है। कोर्ट में उसके लिए दावा कर दो। डीएनए जांच कराने के वक्त सृष्टि से आमना सामना हुआ था। उससे हमें बेटी की कोई फीलिंग नहीं आई। हमें जबरन फंसाया जा रहा है। सीडब्लूसी के कहने पर हमने दावा किया था। डीएनए रिपोर्ट के बाद सच सामने आ जाएगा।
सुनवाई में हाईकोर्ट द्वारा दिए गए दो अवसरों में भी डीएनए की जांच रिपोर्ट पेश नहीं हो सकी थी। जिस पर हाईकोर्ट ने नाराजगी व्यक्त की। सरकारी अधिवक्ता मुकुल त्रिपाठी ने फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला एफएसएल) आगरा के उप निदेशक अशोक कुमार से बात की। उन्होंने बताया है कि नाबालिग बच्चे की डीएनए जांच रिपोर्ट जमा करने के लिए उन्हें छह सप्ताह का समय चाहिए होगा। दो-तीन मामले लंबित होने के कारण समय की आवश्यकता है, जिसमें उच्च न्यायालय द्वारा तत्काल रिपोर्ट मांगी गई है और लगभग चार मामले जिला अदालतों के समक्ष लंबित हैं जिनमें फिर से शीघ्र रिपोर्ट मांगी गई है। ऐसी परिस्थितियों मे उन्होंने प्रार्थना की है। इसलिए डीएनए परीक्षण रिपोर्ट जमा करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया गया था। हाईकोर्ट ने कहा कि इस मामले में नाबालिग बच्ची की कस्टडी और उसका जीवन शामिल है। रिपोर्ट में देरी नहीं होनी चाहिए। रिपोर्ट में विफल रहने पर निदेशक एफएसएल आगरा को अदालत में देरी का सटीक कारण और उन सभी मामलों का विवरण बताने के लिए अदालत में उपस्थित रहने का आदेश जारी किया है। बाल गृह में निरुद्ध बालिका की डीएनए बालिका और उसकी जैविक पिता होने का दावा करने वालों की डीएनए जांच रिपोर्ट ना आने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कड़ा रूख अख्तर किया। कहा कि यह मामला एक नाबालिक बच्ची की कस्टडी और जीवन से जुड़ा हुआ है इसमें लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। हाईकोर्ट द्वारा दिए गए दो अवसरों में भी डीएनए की जांच रिपोर्ट पेश नहीं हो सकी। इस पर हाईकोर्ट ने नाराजगी व्यक्त की। सरकारी अधिवक्ता मुकुल त्रिपाठी ने कहा कि उन्होंने फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला एफएसएल) आगरा के उप निदेशक अशोक कुमार से बात की। उन्होंने बताया है कि नाबालिग बच्चे की डीएनए जांच रिपोर्ट जमा करने के लिए उन्हें छह सप्ताह का समय चाहिए होगा। दो-तीन मामले लंबित होने के कारण समय की आवश्यकता है, जिसमें उच्च न्यायालय द्वारा तत्काल रिपोर्ट मांगी गई है और लगभग चार मामले जिला अदालतों के समक्ष लंबित हैं जिनमें फिर से शीघ्र रिपोर्ट मांगी गई है। ऐसी परिस्थितियों मे उन्होंने प्रार्थना की है। इसलिए डीएनए परीक्षण रिपोर्ट जमा करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया गया।
बच्ची के जीवन और कस्टडी पर हाईकोर्ट गंभीर
बच्ची लंबे समय से बाल गृह में निरुद्ध है। वह परिवार से दूर है। बच्ची के जीवन और कस्टडी पर हाई कोर्ट गंभीर है हाईकोर्ट ने कहा कि इस मामले में नाबालिग बच्ची की कस्टडी और उसका जीवन शामिल है। रिपोर्ट में देरी नहीं होनी चाहिए। रिपोर्ट में विफल रहने पर निदेशक एफएसएल आगरा को अदालत में देरी का सटीक कारण और उन सभी मामलों का विवरण बताने के लिए अदालत में उपस्थित रहने का आदेश जारी किया है। हाईकोर्ट ने कहा है कि विधि विज्ञान प्रयोगशाला विशेष रूप से डीएनए परीक्षण के संबंध में अपनी सुविधाओं को उन्नत करने के लिए सर्वोत्तम प्रयास करे ताकि न्यायालयों के आदेशों का पालन करने या परीक्षण करने में अनुचित रूप से लंबी अवधि का समय न बर्बाद हो।
डीएनए रिपोर्ट नहीं हुई मैच
हाईकोर्ट में पेश हुई। बच्ची के जैविक दावा करने वाले दम्पत्ति की डीएनए रिपोर्ट नेगेटिव आई। दावेदार दंपत्ति और सृष्टि की डीएन रिपोर्ट मैच नहीं हुई। डीएनए रिपोर्ट मेल नहीं खाने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बच्ची को उसकी पालनहार मां को दिए जाने का आदेश दिया। हाईकोर्ट ने न केवल बच्ची की कस्टडी उसकी पालने वाली मां को सौंपी बल्कि जल्द से जल्द गोद लेने की वैधानिक प्रक्रिया पूरी करने के आदेश भी दिए। हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौराना अपना फैसला यशोदा के पक्ष में सुनाया था। कोर्ट ने बच्ची की सुपुर्दगी उसी यशोदा मां को देने का आदेश दिया। पालनहार मां सामाजिक कार्यकर्ता नरेश पारस के साथ प्रयागराज गई थी। आदेश की प्रति लेकर सीधे बाल गृह पहुंचे। नरेश पारस ने हाईकोर्ट से मिले 11 पेज का आदेश की प्रति बाल कल्याण समिति को देकर बेटी मां के सुपुर्द करने का अनुरोध किया। जिला प्रोबेशन अधिकारी ने बाल गृह पहुंचकर गोद देने संबंधी प्रक्र्रिया पूरी कराई। बाल कल्याण समिति के आदेश पर बालिका को यशोदा के सुपुर्द कर दिया गया। बाल गृह केे बाहर मां-बेटी काफी देर तक एक दूसरे के गले से चिपकी रहीं। पालनहार मां ने कहा कि अब अपनी बेटी को अलग नहीं होने दूंगी।
कोर्ट ने सीडब्ल्यूसी के फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि अधिकारियों ने इस मामले में संवेदनशीलता नहीं दिखाई। साढ़े आठ साल की बच्ची को ऐसी कानूनी बेड़ियां लगा दीं, जिसे लगाना बहुत आसान है लेकिन प्यार करने वाली मां दे पाना कठिन है। कानूनी दांवपेच से बच्ची को उसकी पालनहार मां से दूर करना आसान है, लेकिन यशोदा मैया जैसी मां दे पाना कानून के बस में नहीं। बीते सात साल से बच्ची उन्हों के परिवार में रह रही है। सभी से उसका भावनात्मक लगाव है। लिहाजा, बच्ची के लिए यशोदा ही असली मां है और उसका परिवार सर्वोत्तम संरक्षक। बेटी पाने के लिए शासन प्रशासन से लेकर हाईकोर्ट तक दौड़ लगाने वाली पालनहार मां के साथ सामाजिक कार्यकर्ता नरेश पारस कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहे। हर सुनवाई में हाईकोर्ट में मौजूद रहे। पालनहार मां कहती हैं कि नरेश पारस का साथ नहीं मिलता तो उनको बेटी कभी नहीं मिल पाती। वह तो अनपढ़ है। कुछ नहीं जानती है। कई बार मुकदमा दर्ज कर जेल भेजने की धमकी दी। नरेश पारस ने हर राह को आसान बनाया।
यशोदा जैसी मां नहीं दे सकता कानून
कोर्ट ने मार्मिक टिप्पणी करते हुए कहा कि कानूनी दांवपेच से बच्ची को उसकी पालनहार मां से दूर करना आसान है, लेकिन यशोदा मैया जैसी मां दे पाना कानून के बस में नहीं। बच्ची पर एक दंपति ने दावा किया था, जो सिद्ध नहीं हो सका। न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला की खंडपीठ के समक्ष पालनहार मां ने अपनी मानद बेटी की सुपुर्दगी के लिए दाखिल याचिका को सुनवाई करते हुए यह मार्मिक टिप्पणी की। कोर्ट ने यशोदा मैया को बेटी गोद देने की प्रक्रिया एक हफ्ते में पूरी करने का निर्देश दिया है। सृष्टि का दुबारा से इंग्लिश मीडियम स्कूल में दाखिला करा दिया गया है। पालनहार माता-पिता उसे हर रोज पढ़ने के लिए स्कूल छोड़ने और लेने जाते हैं। सृष्टि अपने परिवार में आकर बहुत खुश है। उसने कहा कि बड़ा होकर वह आईपीएस अधिकारी बनेगी। नरेश पारस ने कहा कि सृष्टि का सपना पूरा कराया जाएगा। गोद देने की विधिक प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है। जल्द ही उसे कानूनी रूप से गोद दे दिया जाएगा।
UP: पालनहार को मिला हक...11 महीने बाद मिला मां का दर्जा, हाईकोर्ट के आदेश पर प्रशासन ने पूरी कराई कार्रवाई
अमर उजाला नेटवर्क, आगरा Published by: धीरेन्द्र सिंह Updated Sat, 28 Dec 2024 01:02 PM IST
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team
Published : Jan 31, 2024, 4:25 PM IST
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BY JAGRAN NEWSEDITED BY: ABHISHEK SAXENAUPDATED: WED, 22 NOV 2023 07:12 AM (IST)
Agra News: दस साल बाद पालनहार को मिला मां का दर्जा
स्थानीय समाचार December 28, 2024Up18news
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कलियुग की "यशोदा" ने हाईकोर्ट में जीता मासूम पर हक का केस, जैविक पिता का दावा गलत - राजकीय शिशु गृह आगरा
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पालनहार मां के संघर्ष की अनोखी कहानी; 17 महीने बाद घर लौटेंगी खुशियां, पहले अपनाने से इनकार किया, गोद लेने को पूरी दुनिया से भिड़ी
BY JAGRAN NEWSEDITED BY: ABHISHEK SAXENAUPDATED: TUE, 30 JAN 2024 10:56 AM (IST)
https://www.jagran.com/uttar-pradesh/agra-city-mother-fight-for-her-baby-custody-highcourt-give-daughter-to-him-23641356.htmlhttps://www.patrika.com/agra-news/high-court-allahabad-decision-mother-daughter-case-in-agra-8606629
Agra News: Foster mother gets daughter after 17 months in Agra, High Court’s decision…#agranews
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पहले अपनाने से इनकार किया, फिर गोद लेने को पूरी दुनिया से भिड़ गई, मां की ममता की अनोखी कहानी
NBT Nav Bharat Times Contributed by सुनील साकेत |Edited Byआलोक भदौरिया | Lipi 30 Jan 2024, 2:11 pm
Agra News : ‘ मां मुझे अपने साथ ले चलो ‘… हाई कोर्ट के आदेश पर यशोदा से मिली बेटी
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यूपी: जुदाई 17 महीने की और फिर जब बिटिया से मिली यशोदा मैया...बहा दर्द का ऐसा दरिया, देखने वाले भी रो पड़े
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https://www.amarujala.com/uttar-pradesh/agra/girl-child-was-handed-over-to-her-foster-mother-after-17-months-on-orders-of-allahabad-high-court-2024-01-30
चार माह में भी नहीं कराई गोद की विधिक प्रक्रिया आदेश की अवमानना पर पालनहार मां फिर खटखटाएगी आएगी हाईकोर्ट का दरवाजा
The Times of Taj April 19, 2024
DNA रिपोर्ट के लिए एक दिन में तीन बार सुनवाई:आगरा में 15 महीने से बाल गृह से बेटी की सुपुर्दगी के लिए परेशान है दंपती
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आगरा मामले में डीएनए रिपोर्ट प्रस्तुत न करने पर हाईकोर्ट ने जताई नाराजगी
Amrit Vichar By Deepak Mishra On 09 Dec 2023 21:24:49
पिता की तलाश में हुआ DNA टेस्ट तो उड़ गए होश! 7 साल बाद खुला राज़, अब बच्ची लौटी घर
Edited by:
· Manish Kumar Agency:News18 Uttar Pradesh Last Updated:February 03, 2024, 18:34 IST
यशोदा की ममता जीती और सृष्टि फिर से पालनहार को मिल गई
Aur Guru SP_Singh Dec 27, 2024 - 22:31
https://www.aurguru.com/yashodas-love-won-and-the-shrishti-was-again-reunited-with-its-creator
Uttar Pradesh: बच्ची की कस्टडी की जंग जीत गई मीना, High Court ने पक्ष में दिया फैसला | Des Ki Baat
NDTV India 30 Jan 2024 #LatestNewsInHindi #Bulletin #NDTV
Uttar Pradesh News: ऐसा माना जाता है कि मां की ममता के आगे दुनिया झुक जाती है. उत्तर प्रदेश के आगरा में यही हुआ है. लंबी कानूनी लड़ाई के बाद 8 साल की बच्ची आखिर फिर से अपनी पालने वाली मां मीना को मिल गयी.
https://www.youtube.com/watch?v=1fF29j9PN0Q
Public News 360
https://publicnews360.in/archives/76302
Caught in a three-cornered custody battle, who will parent the little girl?
The Indian Express Written by Dheeraj Mishra , Manish Sahu
Agra, Farrukhabad, Lucknow | Updated: December 27, 2023 02:19 IST
https://indianexpress.com/article/india/three-cornered-custody-battle-parent-little-girl-9081962/
Foster mother wins three-cornered custody battle of 9-year-old girl
The Times of India TNN / Jan 31, 2024, 22:21 IST
Allahabad HC decides tripartite custody battle, gives child to foster mother
PUNJAB NEWS LINE | February 02, 2024 04:21 PM
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