कलेजे के टुकड़े को गिरवी रख किया पति का अंतिम संस्कार #NareshParas

कलेजे के टुकड़े को गिरवी रख किया पति का अंतिम संस्कार

आज के जमाने में इंसानियत से बढ़कर लोगों के लिए पैसा होता है, तो मानो जिसके पास पैसा न हो उसका इस धरती पर तो कोई अस्तित्व ही नहीं. और ये पैसा ही है जो इंसान को वो सब करने पर मजबूर कर देता है जो उसने कभी अपने खयालों में भी नहीं सोचा होगा. ऐसा ही एक दर्दनाक मामला आगरा में सामने आया. आगरा में दिल को झकझोर कर रख देने वाली महिला की दास्ताँ सुनकर इंसानियत दंग रह गई. पति के अंतिम संस्कार के लिये महिला ने अपने जिगर का टुकड़ा महज दो हजार रुपये में सूदखोर के पास गिरवी रख दिया. जिगर के टुकड़े को बंधुआ मजदूरी से आजाद कराने और दो हजार रुपये कर्ज चुकाने के लिए के लिये पीड़ित माँ अपने दो छोटे बच्चों और जेठ के साथ दो हजार किलोमीटर दूर चलकर नागालैंड से आई. यहाँ भी अपनों ने उसका साथ छोड़ दिया.अंजान शहर उसे अकेला छोड़कर उसे चले गए.वहां खाने पीने को इतनी मजबूर हो गई कि अपने दो छोटे बच्चों को झूठन खिलाकर और नाली का पानी पिलाने को मजबूर हो गई. समाजसेवी नरेश पारस की मदद से महिला की लोगों ने की मदद, खाने और पानी का लोगो ने चन्दा करके के किया इंतजाम, आगरा से डिब्रूगढ़ टाउन तक का महिला का ट्रेन का टिकिट बनवाकर उसे घर भेजा. आर्थिक तंगी ने देश में नारी सशक्तिकरण के दावों की पोल खोल कर रख दी.जानते हैं ऐसी माँ की करुण दास्ताँ ...

आगरा के शाह मार्केट में अपने बच्चे को दूध पिलाती रीता 

रीता से जानकारी लेते नरेश पारस 

रीता की गोद में भूख से बिलखते बच्चे 

क्या है पूरा मामला
सात माह पूर्व नागालैण्ड की रहने वाली रीता के पति का देहांत हो गया था.उस वक्त रीता के पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वह उसका अंतिम संस्कार करवा सके। पूरे गांव के सामने हाथ फैलाया लेकिन कोई मदद के लिए आगे नहीं आया। आखिरकार उसको अपने कलेजे पर पत्थर रखना पड़ा। उसे मजबूरी में अपने सात साल के बड़े बेटे सोनू को साहूकार के पास 2000 रुपये में गिरवी रखना पड़ा। शर्त थी कि जब वह 2000 रुपये चुकाएगी तभी सोनू को पा सकेगी। रीता ने कर्ज में मिले रुपये से अपने पति का अंतिम संस्कार किया। बचे पैसों से कुछ दिन घर का खर्च चला लेकिन मां की ममता बेटे की ओर ही लगी रही। इसके बाद तो मुसीबतों ने रीता का पीछा नहीं छोड़ा। उसके सामने यह सवाल था कि वह काम करके बच्चों का पेट भरे या बड़े बेटे को मुक्त कराए। बेटे को मुक्त कराने के लिए उसने काम की तलाश की लेकिन उसे काम नहीं मिला। अंत में वह अपने जेठ पप्पू और अन्य लोगों के साथ काम की तलाश में 13 मई 2017 को आगरा आ गई लेकिन यहां उसके अपनों ने उसका साथ छोड़ दिया वह दर दर भटकने को मजबूर हो गई। उसके पास खाने को पैसे भी न थे। उसने झूठन खाकर और नाली का पानी पिलाकर बच्चों का पेट भरा।
टूंडला स्टेशन पर अपने बच्चों के साथ बैठी रीता.

स्टेशन पर खाना खाती रीता.

स्टेशन से कोहिमा पुलिस से बात करती रीता.

 13 मई 2017 को शनिवार की सुबह करीब नौ बजे रीता बच्चों को लेकर आगरा शाह मार्केट में भटक रही थी। बच्चे भूख और प्यास से व्याकुल थे। वह पानी लेने दुकानदार के पास गई तो उसे दुत्कारकर भगा दिया। वह अपने दो बच्चे को नाली का पानी पिला रही थी। इतने में एक दुकानदार की नजर पड़ी। उसने पानी खरीदकर उसे पिलाया। महिला सिर्फ रोए जा रही थी कह रही थी उसे घर पहुंचा था। सूचना मिलने पर समाजसेवी नरेश पारस वहां पहुँच गए. उन्होंने महिला से पूछा तो उसने अपनी आपबीती बताई।
आई नेक्स्ट, आगरा 14 मई 2017 

40 रुपये रोज मिलते थे
उसने बताया वह चाय के बागानों में काम करके अपने बच्चों को पेट भर रही थी लेकिन गिरवी रखे बेटे को छुड़ाने के लिए पैसे नहीं जुटा पा रही थी। रीता दीमापुर में जो काम करती थी, उससे उसको दिन भर में सिर्फ 40 रुपये ही मिलते थे। इतने रुपये से तो वह मुश्किल से अपना और दो बच्चों, तीन साल की बेटी नंदनी और डेढ़ साल के बेटे अरुण का पेट भर पाती थी। दिन बीतते जा रहे थे लेकिन वह सोनू को मुक्त कराने के लिए 10 रुपये भी नहीं जुटा सकी। इसी बीच उसका भाई पप्पू घर आया। उसने कहा कि वह आगरा चले। वहां पर रोज 300 से 400 रुपये मजदूरी मिल जाती है। वहां महीने भर काम करके वह बेटे को छुड़ाने लायक रुपये कमा लेगी। भाई की बातों में वह आ गई और ट्रेन पकड़कर दो बच्चों के साथ आगरा पहुंच गई। यहां पर भी उसको धोखा मिला। स्टेशन के बाहर ही उसका भाई पप्पू उसे छोड़कर भाग गया। आगरा आई थी लेकिन हर जगह उसे दुत्कार मिली। वह मदद के लिए थाने भी गई लेकिन पुलिस ने उसे भगा दिया। 
दैनिक जागरण,आगरा 14 मई 17 




कोई भाषा नहीं समझता था
जेठ के भाग जाने के बाद रीता के सामने दिक्कत यह थी कि वह काम कैसे ढूंढे। आगरा में उसकी भाषा समझने वाला कोई नहीं था। वह इशारे से लोगों से अपने बच्चों के लिए खाना मांगती थी। लोग भिखारी समझकर उसको दुत्कार देते थे। मजबूरी में उसने कूड़े से खाने पीने का सामान ढूंढना शुरू कर दिया। इसी तरह वह करीब महीने भर अपने बच्चों का पेट पालती रही। कभी वह सड़क पर सो जाती तो कभी स्टेशन के बाहर यार्ड में। अनजान नगरी में एक दिन उसके सामने फरिश्ता बनकर आए समाज सेवी नरेश पारस। नरेश पारस ने दुखियारी महिला को दो बच्चों के साथ सड़क पर बैठे देखा तो उसका हालचाल पूछा। महिला की भाषा उनकी समझ में नहीं आई। इतना वह जरूर समझ गए थे कि महिला नार्थ ईस्ट की रहने वाली है।
रीता से बात करती आशा ज्योति केंद्र की काउंसलर सीमा अब्बास 
कहानी सुनकर निकल आए आंसू
नरेश पारस ने मामले की सूचना आशा ज्योति केन्द्र लखनऊ को दी। लखनऊ से केस आगरा रैफर किया। करीब ढाई  घंटे बाद आशा ज्योति केन्द्र की काउंसलर सीमा अब्बास एक महिला कांस्टेबिल को लेकर पहुंची। जब उसने अपनी कहानी सुनाई तो हर किसी की आंखो में आंसू निकल आए। महिला से बातचीत की तो महिला ने बताया कि वह पुलिस स्टेशन नहीं घर जाना चाहती है। इस पर आशा ज्योति केन्द्र की टीम महिला को सड़क पर छोड़कर चली गई। 
हिंदुस्तान,आगरा 14 मई 2017 
पसीज गया लोगों का दिल
नरेश पारस ने दुकानदारों की मदद से रीता को टूण्डला स्टेशन ले गए। टूण्डला से डीबूगढ टाउऩ गोहाटी ब्रह्मपुत्र मेल ट्रेन की टिकट दिलाई। रीता के लिए 3500 रुपये का प्रबंध किया। नागालैंड पुलिस से भी संपर्क कर बेटे को बंधक बनाने की सूचना दी गई। पुलिस ने आश्वासन दिया है कि रीता के पहुंचते ही वह साहूकार के खिलाफ कार्रवाई करेगी। साथ ही जीआरपी और आपीएफ को इसकी सूचना दे दी। इसके साथ ही नरेश पारस ने कोहिमा पुलिस के डीएसपीओ और महिला थाना पुलिस की रीता से बात कराई। नागालैंडदीमापुर महिला थाना की एसआई असेंगला ने नरेश पारस का आभार जताते हुए कहा कि वह कोहिमा में उसे उतार लेंगे और उसके बच्चे को मुक्त करा लेंगे। नरेश पारस ने  बाजार के दुकानदारों के सहयोग से महिला को खाना लिखाया। उसके लिए तीन दिन का खाने का सामान पैक करके दिया। बच्चों को कपड़े और चप्पल दिए।






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