आगरा में बारूद के ढेर पर मासूम #NareshParas

आगरा में बारूद के ढेर पर मासूम




आगरा जनपद के एत्मादपुर तहसील के अन्र्तगत घौर्रा, खरगा आदि गांवों में खुलेआम बारूद की फसल तैयार की जा रही है। दिवाली के लिए पटाखे और बम बेखौफ बनाये जा रहे हैं। इस मौत के कारोबार में हर उम्र के लोग लगे हुए हैं। अधिकांश रूप से बच्चों का इस्तेमाल किया जाता है। बच्चे बम बनाने का काम करते हैं। बम बनाकर खेतों में उनको सुखाया जाता है। इसके बाद पैकिंग करके बाजारों में भेजा जाता है। बड़ी ही हैरत की बात है कि इस सबसे आगरा प्रशासन बेखबर है। प्रशासन को भनक तक नहीं लगती है कि एत्मापुर के गांवों में बारूद की खेती लहलहा रही है। जब यहां धमाके होते हैं तब प्रशासन की नींद टूटती है। 


आगरा के इन गांव में यह मौत का कारोबार नया नहीं है। यह कर्इ सालों से चला आ रहा है। बकायदा प्रशासन द्वारा सात लोगों को पटाखे बनान का लार्इसेंस भी दिया है। जब मैंने इन गांवो में जाकर पड़ताल की तो हैरान कर देने वाला सच सामने आया। प्रशासन ने केवल सात लोगों को लार्इसेंस दिये हैं जबकि गांव के हर घर में पटाखे और बम तैयार की जा रही हैं। घर के सभी लोग इस कारोबार में लिप्त हैं। महिलाएं खाना बनाने तथा पुरूष घर के बाहर के काम निपटाते हैं। कच्चा माल लाना पटाखे बेचने जाना आदि। इन परिसिथतियों में घर में बचते हैं मासूम बच्चे। इन बच्चों को पटाखे बनाने की जिम्मेदारी दे दी जाती है। बच्चे पटाखे बनाते हैं। बारूद बनाने से लेकर सुखाने तक सारा काम ये बच्चे कर लेते है।


इनसे बात करने की कोशिश की गर्इ तो किसी हर किसी ने बात करने से इंकार कर दिया। इन बच्चों की सुरक्षा के यहां कोर्इ इंतजाम नहीं हैं। आग बुझाने के भी उपकरण नहीं हैं। पूरी तरह एक गांव का ही परिवेश है। खेलने कूदने और पढ़ने की उम्र में इन गांवों के मासूम बारूद से खेल रहे हैं। शिक्षा की बात करने पर इन बच्चों ने बताया कि उनके लिए तो यही शिक्षा है। पढ़ने लिखने के बाद नौकरी तो मिलती नहीं है। इस धंधे को सीखकर कम से कम अपना परिवार तो चला सकते हैं। 


बारूद के इस कारोबार में हर साल धमाके भी होते हैं। धमाके होने पर आगरा प्रशासन की फौज भी पहुंचती है। कर्इ लोगों की जाने भी चली जाती हैं। हादसे के दौरान जिले के सभी अधिकारी इन गांवो की ओर दौड़ लगा लेते हैं लेकिन कुछ दिन बाद सब कुछ भूल जाते हैं। फिर दुबारा से वहीं मौत का कारोबार शुरू हो जाता है। इस संबंध में श्रम विभाग के आला अधिकारियों से बात की गर्इ तो उन्होने कहा कि उनके संज्ञान में ये मामला है ही नहीं। उन्होने कहा कि आपके माध्यम से हमें जानकारी मिली है। इस पर कार्यवाही करेंगें।


क्या गांवों में बारूद की फसल तैयार की जा सकती है ? क्या प्रशासन मानकों के विपरीत पटाखे बनाने का लार्इसेंस दे सकता है ? क्या मासूम बच्चों से ये खतरनाक काम करवाया जा सकता है ? उनकी सुरक्षा के क्या इंतजाम हैं ? जिस देश में शिक्षा का अधिकार कानून लागू हो और वहां देश के भविष्य बारूद के ढेर पर बैठकर बम-पटाखे बना रहे हो उनका खुद का क्या भविष्य होगा ? वो सवाल है जो में जेहन में लगातार उठ रहें है। क्या आपके पास है कोर्इ जबाब ?


इस बारूद के कारोबार से जुड़े कुछ चित्र भी आपके साथ साझा कर रहा हूँ।
इसे मीडिया ने प्रमुखता के साथ प्रकाशित किया.वो भी आपके समक्ष पेश है.

दैनिक जागरण, आगरा  25-10-13


पंजाब केसरी, दिल्ली 25-10-13

पुष्प सवेरा, आगरा 25-10-13

द सी एक्सप्रेस, आगरा 25-10-13 

सच का उजाला, आगरा 25-10-13 

                                                                                                            (नरेश पारस, आगरा)

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