हौंसलों से जीती जंग, 22 साल बाद एसिड अटैक पीड़िता को मुआवजा मिला
नाम रुकैया, उम्र 36 साल. 12 सर्जरी और 23 साल तक बेइंतहा दर्द, जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है लेकिन 22 साल बाद सरकार से मिली मदद ने उसके आंसू पोंछ दिए। उसकी दास्तां सुनकर लोगों की आंखें भर आती हैं. गला रुंध जाता है। आगरा के शीरोज हैंगआउट कैफे में काम करने वाली एसिड हमले की शिकार रुकैया को 22 वर्ष बाद नवरात्र पर मुआवजा मिला। सरकार की ओर से मुआवजे में पांच लाख रुपए की राशि मिली। रुकैया के लिए 22 वर्ष की काली रात के बाद अब उम्मीदों की सुबह हुई है। सामाजिक कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता नरेश पारस के प्रयासों से रुकैया को संभव हो सका। 2002 में एकतरफा प्यार में इंकार करने पर उस पर तेजाब फेंका गया था।एडीजी राजीव कृष्ण के हस्तक्षेप से मामला खुला और अब उसे मुआवजा मिला। रुकैया पर उनकी बड़ी बहन की ससुराल तुर्कमान गेट अलीगढ़ में वर्ष 2002 में तेजाब से हमला हुआ था। उस समय वह मात्र 14 वर्ष की थीं।
एकतरफा प्रेम ने छीना चेहरे का रूप
दर्द भरी दास्तान आगरा के एत्माउदद्दौला क्षेत्र स्थित पीलाखार निवासी 36 वर्षीय रुकैया की है। रुकैया ने बताया कि मेरी बहन इसरत जहां का ससुराल अलीगढ़ के तुर्कमान गेट कोतवाली में मसानी का नगला में है। बात 2002 की है, मैं अपनी बहन के पास गई थी। उस समय मैं 14 साल की थी। बहन का 24 वर्षीय देवर आरिफ मुझे परेशान करता था। मैंने आरिफ की हरकतें अपनी बहन को बताईं तो उन्होंने उससे अपनी आदतें सुधारने के लिए कहा। इस पर आरिफ ने कहा कि मैं इससे शादी करूंगा। मैं छोटी थी तो मैंने उसका निकाह का प्रस्ताव ठुकरा दिया। आरिफ मुझसे 10 साल बड़ा था। वह रिक्शा चलाता था। उसने धमकी दी थी कि यदि ये मेरी नहीं हुई तो किसी और की भी नहीं होने दूंगा। जिससे मैं बेहद डर गई थी. आरिफ को देखकर छिप जाती थी क्योंकि, आरिफ घर में जहां पर भी उसके सामने आता, अभद्रता करता था। 7 सितंबर 2002 की रात मेरी जिदंगी की सबसे मनहूस रात थी। वह टॉयलेट जाने के लिए दरवाजे के बाहर खड़ी थी। मैं कुछ समझती, उससे पहले ही आरिफ आया और मेरे ऊपर तेजाब फेंक कर भाग गया। जिससे मेरी चीख निकल गई। तेजाब से मेरा चेहरा झुलस गया। मैं बेहोश हो गई। होश आया तो अस्पताल में थी। तेजाब से चेहरा बुरी तरह झुलस गया था। मगर, मेरी जान बच गई।
शीरोज कैफे में मिली छांव
रुकैया ने बताया कि जिस तेजाब का मैंने कभी नाम सुना था। वो कितना खतरनाक और दर्दनाक होता है, यह सब मैंने सहा है। अस्पताल में भर्ती रही। मेरी कई सर्जरी हुईं। जिससे अब चेहरा ऐसा हुआ है। घटना के बाद मेरे भाई ने पुलिस में शिकायत की थी मगर, पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं। मुझे भाई के साथ आगरा भेज दिया गया. जिस पर मैं और भाई आगरा आ गए. बहन के परिवार को बचाने के लिए फिर कोई शिकायत नहीं की। कुछ वर्ष बाद भाई ने उन्हें न्याय दिलाने के लिए अभियोग दर्ज कराने का प्रयास किया। पुलिस ने कई वर्ष पुराना मामला होने का हवाला देते हुए कार्रवाई नहीं की। छांव फाउंडेशन द्वारा संचालित शीरोज हैंग आउट कैफे पर उसने काम करना शुरू किया।
बीस साल बाद दर्ज हुआ मुकद्मा
रुकैया वर्ष 2014 में शीरोज हैंगआउट कैफे से जुडीं। यहां आने पर उन्होंने नए सिरे से जीवन आरंभ किया। कैफे में काम करने लगीं। दिसंबर 2022 में तत्कालीन एडीजी राजीव कृष्ण शीरोज हैंगआउट कैफे एक कार्यक्रम में शामिल होने आए थे। रुकैया उनसे मिलीं। उन्हें आपबीती बताई। तत्कालीन पुलिस आयुक्त डॉ. प्रीतिंदर सिंह के आदेश पर आरोपित देवर आरिफ के विरुद्ध एत्माद्दौला थाने में मुकदमा दर्ज किया गया था। घटनास्थल अलीगढ़ होने के चलते विवेचना थाना कोतवाली अलीगढ़ स्थानांतरित की गई। आरोपित आरिफ वर्तमान में जेल में बंद है। मुकदमे के बाद पीड़िता पैरवी करने की हिम्मत नहीं जुटा सकी। रुकैया के सामने समस्या थी कि कानूनी लड़ाई कैसे लड़ी जाए, उसे इसकी जानकारी नहीं थी। जिस पर सामाजिक कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता नरेश पारस उसकी मदद को आगे आए। उन्होंने मामले की पैरवी शुरू की। आगरा और अलीगढ़ प्रशासन से मजबूत पैरोकारी की। अलीगढ़ डीएम कार्यालय में पीड़िता को ले जाकर मुआवजे के आवेदन की प्रक्रिया पूरी कराई गई है। जिसके बाद सरकार से उसे पांच लाख रुपए का मुआवजा मिला।
हादसा भी न तोड़ सका हिम्मत
आरोपित की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट में जमानत याचिका पेश की गई थी, जिसकी सुनवाई चल रही है। वर्ष 2025 में 27 अप्रैल को तारीख पर प्रयागराज जाते समय नरेश पारस और रुकैया की बस कानपुर में दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी। हादसे में ड्राइवर सहित दो लोगों की मौत हो गई। 22 लोग घायल हुए। जिसमें नरेश पारस घायल हो गए। एक ऑपरेशन भी हुआ। चार महीने तक बेड रेस्ट पर रहे। स्वस्थ होने पर पुनः रूकैया की पैरवी में जुट गए। उन्होंने साथी अधिवक्ता वीसी पाल के माध्यम से हाईकोर्ट में रुकैया का पक्ष रखा। आरिफ की जमानत का पुरजोर विरोध किया। अभी भी आरोपी जेल में है।
अलीगढ़-आगरा की पैरवी से मिला मुआवजा
रूकैया आगरा की रहने वाली है जबकि घटना अलीगढ़ में हुई थी। केस भी अलीगढ़ में चल रहा था। ऐसे में मुआवजे की प्रक्रिया भी इन दोनों जिलों से ही होनी थी। नरेश पारस रूकैया के साथ अलीगढ़ गए। जिला प्रोबेशन अधिकारी तथा जिलाधिकारी कार्यालय में संबंधित अधिकारियों से जानकारी लेकर आवेदन कराया। आगरा तथा अलीगढ़ प्रशासन से सामन्जस्य स्थापित कर दमदार पैरवी की जिसके चलते रूकैया को शासन से पांच लाख रूपये की मुआवजे के रूप में आर्थिक सहायता मिली। रूपये मिलने पर रूकैया बहुत खुश है।
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