सजा पूरी होने पर जुर्माने के अभाव में जेल काट रहे बंदी को कराया आजाद #NareshParas


आगरा सेन्ट्रल जेल से रिहाई के दौरान नरेंद्र और उनकी पत्नी के साथ नरेश पारस 

      जिसके हाथ सोने और पैर लोहे को हों उसके लिए सब मुमकिन है। बड़े से बड़ा अपराधी भी बाइज्जत बरी हो जाता है। पैसे के दम पर अपराधियों को सजा भी नहीं हो पाती है। निचली अदालतों से लेकर देश की सर्वोच्च अदालत तक उनकी पैठ रहती है और पैसे के दम पर जेल के सींखचों तक नहीं पहंच पाते हैं। आगरा की केन्द्रीय कारागार में दर्जनों बंदी ऐसे भी हैं जो अपनी सजा पूरी कर चुके हैं लेकिन गरीब होने के कारण वह जुर्माना राशि अदा करने में सक्षम नहीं हैं। जुर्माना राशि न अदा कर पाने के कारण वह जेल में सजा काटने को मजबूर हैं। इसे भाग्य की बिडम्बना समझकर वह चुपचाप जेल की सलाखों के पीछे अपना जीवन बिता रहे हैं। जेल प्रशासन का कहना है कि यदि वह जुर्माना राशि जमा कर दें तो वह तत्काल छूट सकते हैं। ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट नरेश पारस ने आगे आकर एक गरीब कैदी का जुर्माना भरकर उसे आजाद करा दिया।
हिंदुस्तान, आगरा 10 फरवरी 2016 

        नरेश पारस द्वारा विगत दिनों पूर्व जेल के निरीक्षण के दौरान उन्हें बताया गया कि केन्द्रीय कारागार में 12 ऐसे सिद्धदोष बंदी हैं, जिनकी सजा पूरी हो चुकी है लेकिन गरीबी के चलते वह जुर्माना अदा नहीं कर पाने के कारण सजा काटने को मजबूर हैं। नरेश पारस ने उन कैदियों से भी मुलाकात की। कैदी अपनी व्यथा सुनाते-सुनाते फफक-फफक कर रो पड़े। कई बंदियों ने बताया कि उन्हें बेवजह फंसाया गया है तो कई बंदी पश्चाताप की आग में जलते हुए दिखाई दिए। वह बंदी अपनी जिंदगी दुबारा से शुरू करना चाहते हैं लेकिन वह जुर्माना अदा न कर पाने के कारण जेल काटने को मजबूर हैं। जेलों पर लंबे समय से सुधारात्मक काम कर रहे मानवाधिकार कार्यकर्ता नरेश पारस कहते हैं कि सोने की मुठ्ठी वाले हाथों को कभी सजा नहीं होती है। जेलों में अधिकांश वह कैदी बंद हैं जो अपनी पैरवी नहीं कर पाते हैं। या तो उनके पास पैसा नहीं होता है या फिर पैरोकार का अभाव। जेलें अपराधियों के सुधारने के लिए बनाई गईं। जो बंदी अपनी सजा पूरी कर चुके और जुर्माना अदा न कर पाने के कारण सजा काट रहे हैं, यह उनके मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन है। जहां एक ओर सरकार आतंकवादी मामलों में मुकद्में बापस लेने की बात कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर सरकार को ऐसे बंदियों के बारे में भी सोचना चाहिए जो सजा पूरी होने के बावजूद भी जुर्माने के अभाव में सजा काट रहे हैं। ऐसे गरीब बंदियों का जुर्माना सरकार को माफ कर देना चाहिए और उनके पुनर्वास पर विचार करना चाहिए। इस संबंध में नरेश पारस ने मानवाधिकार आयोग को पत्र लिखा है।  
पंजाब केसरी 10 फरवरी 2016 

            इन बंदियों की रिहाई के लिए मानवाधिकार कार्यकर्ता नरेश पारस ने मानवाधिकार आयोग को पत्र लिखा है। साथ ही इस मुहिम को आगे बढ़ाते हुए बुलंदशहर के नरेन्द्र पुत्र महावीर सिंह को अपने निजी पैसे से पांच हजार का जुर्माना जमा कर आजाद करा दिया। महावीर सिंह 8 नवम्बर 2007 से सजा काट रहा था, जिसकी 9 जनवरी 2016 को सजा पूरी हो गई लेकिन उसके परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी सुदढ़ नही थी कि वह पांच हजार रूपये जुर्माना जमाकर उसे छुड़ा लें। नरेश पारस ने मंगलवार उसकी जुर्माना राशि जमा कर से उसे आजाद करा दिया। नरेन्द्र को पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ कि कोई अंजान व्यक्ति उसका जुर्माना कैसे भर सकता है लेकिन जब जेलर रत्नाकर लाल ने उसे उसकी रिहाई के बारे में बताया तो वह बहुत खुश हुआ। नरेश पारस ने उसके परिजनों को पहले ही बुला लिया था। जैसे ही नरेन्द्र परिजनों के सामने पहुंचा तो उसकी बूढ़ी पत्नी की आखों से आंशू बह निकले। परिजनों ने नरेश पारस को कोटि-कोटि धन्यवाद दिया। 56 वर्षीय नरेन्द्र ने कहा कि अब जाते ही वह अपनी बिटिया के हाथ पीले करेगा। परिजन भी खुशी के मारे फूले नहीं समा रहे थे। इस दौरान केन्द्रीय कारागार के जेलर लाल रत्नाकर सिंह भी मौजूद रहे। नरेश पारस ने कहा कि जल्द ही अन्य बंदियों को भी रिहा करा दिया जाएगा जो जुर्माने के अभाव में सजा काट रहे हैं।


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