यूपी की जेलों में हर रोज होती है एक कैदी की मौत, मरने वाले अधिकांश युवा और विचारधीन #NareshParas
अपराधी को सुधारने के लिए जेलें बनाई गई हैं, जहाँ अपराधी को अपराध बोध होता है और जुर्म की दुनिया को छोड़ने का संकल्प लेता है लेकिन यूपी की जेलों में अपराधियों को यह मौका नहीं मिलता.एकबार जेल जाने का मतलब सीधी मौत. यूपी की जेलें कैदियों की कब्रगाह बन रही हैं। पांच साल में जेल की चहारदीवारी के भीतर दो हजार से अधिक कैदियों-बंदियों की जिंदगी का सूर्यास्त हो गया। इनमे अधिकांश वो बंदी हैं जो जिनकी उम्र 25-40 वर्ष के बीच है और जो विचाराधीन थे.उनका न्यायलय में मुकदमा चल रहा था लेकिन अदालत का फैसला आने से पहले ही जेल की सलाखों के पीछे उन्होंने दम तोड़ दिया.ये बिलकुल सच है.वर्ष 2012 से जुलाई 2017 के बीच हुई मौतों का यह आंकड़ा सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत मैंने (नरेश पारस) उत्तर प्रदेश के कारागार विभाग से जुटाया है। आंकड़ों के हिसाब से यूपी की जेलों में लगभग एक कैदी की हर रोज मौत हो रही है. प्रदेश में 62 जिला जेल, पांच सेंट्रल जेल और तीन विशेष कारागार हैं।जेल में जन्म, वहीं मौत : जेलों में मरने वालों में नवजात बच्चे भी शामिल हैं। सीतापुर जेल में कुंदना पत्नी सुरजाना के एक साल के बेटे अनमोल ने इस साल दम तोड़ दिया। हरदोई जिला जेल में 24 मई 2013 को वंदना के छह महीने के पुत्र प्रिंस की मौत हुई। मथुरा जिला जेल में वर्ष 18 अक्टूबर 2014 को जुमराती के नवजात बच्चे एवं कानपुर देहात जेल में 18 सिंतबर 2014 को रामकली के नवजात पुत्र की मौत हुई, जबकि वाराणसी जेल में रेखा के डेढ़ महीने के बेटे ने दम तोड़ दिया।
मृतकों में 50 फीसद विचाराधीन बंदी : मरने वालों में आधी संख्या विचाराधीन बंदियों की है। इनकी उम्र 25 से 45 साल के बीच थी। इनके मुक़दमे न्यायलय में चल रहे थे.उनके फैसले आना बाकी थे लेकिन फैसले आने से पहले ही जेल में उनकी सांसे थम गईं.सबसे ज्यादा मौतें क्षय रोग और सांस की बीमारी के चलते होना बताई गई हैं। प्राक्रतिक मौतें बताकर उनकी फाइल बंद कर दी जाती है.सोचने वाली बात है कि जब जेलों में स्वास्थ्य सेवाओं का दम भरने वाली सरकारें क्या कर रहीं हैं जब उनकी बीमारी से मौत हो रही हैं.कहाँ हैं स्वास्थ्य सेवाएं ? जेल में कैदियों की मौत स्वास्थ्य सेवाओं पर भी एक बड़ा सवाल खड़ा करती हैं.
जेलों में क्षमता से अधिक कैदी : जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों का होना भी इतनी मौतों का प्रमुख कारण है।जेलों में क्षमता से अधिक कैदी निरुद्ध हैं.जेलों में क्षमता के अनुसार व्यवस्थाएं होती हैं लेकिन संख्या बढ़ने से व्यवस्थाएं चरमरा जाती हैं. आगरा जिला जेल की क्षमता 1015 कैदियों की है, लेकिन यहां 2600 से ज्यादा कैदी निरुद्ध हैं। इसी तरह 1110 कैदियों की क्षमता वाले केंद्रीय कारागार में 1900 से ज्यादा बंदी हैं।
टीबी और सांस की बीमारी मौतों का प्रमुख कारण : जेलों में कैदियों की होने वाली मौतों में बड़ी संख्या बुजुर्गों की हैं। इनमें ज्यादातर टीबी, दमा और उच्च रक्तचाप से पीडि़त थे। ये बीमारी संक्रमण से फैलती है.बैरकों में क्षमता से अधिक कैदियों के चलते टीबी जैसी बीमारी तेजी से फैलती है।
ये हैं कुछ जेल में मरने वालों के आकंड़े
- 24 मई 2013 को हरदोई जिला जेल में वंदना के छह महीने के पुत्र प्रिंस की मौत हुई।
- 18 अक्टूबर 2014 को मथुरा जिला जेल में जुमराती के नवजात बच्चे की मौत हो गई।
- 18 सिंतबर 2014 को कानपुर देहात जेल में रामकली के नवजात पुत्र की मौत हो गई।
- 21 सिंतबर 2014 वाराणसी जेल में रेखा के डेढ़ महीने के बेटे ने दम तोड़ दिया।
- 10 मई 2013 को बुलंदशहर जिला में निरुद्ध 106 साल की रामकेली पत्नी स्वरूप की मौत हो गई।
- 02 दिसंबर 2016 को बस्ती जिला जेल में 100 साल के बंदी वासुदेव ने दम तोड़ा।
- इसके अलावा सीतापुर जेल में कुंदना पत्नी सुरजाना के एक साल के बेटे अनमोल ने इस साल दम तोड़ दिया। (prisoners deaths)
- जेलों में मरने वालों में नवजात बच्चे भी शामिल हैं।
जेलों में क्षमता से अधिक कैदी बंद
- जेलों के भीतर निरुद्ध कैदियों की मौतों का कारण जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों का होना भी है।
- आगरा जिला जेल की क्षमता 1015 कैदियों की है, लेकिन यहां 2600 से ज्यादा कैदी निरुद्ध हैं।
- केंद्रीय कारागार में 1110 कैदियों की क्षमता है लेकिन यहां 1900 से ज्यादा बंदी हैं।
- जेलों में कैदियों की होने वाली मौतों में बड़ी संख्या बुजुर्गों की हैं।
- हालांकि इनमें ज्यादातर टीबी, दमा और उच्च रक्तचाप से पीड़ित थे।
- बैरकों में क्षमता से अधिक कैदियों के चलते टीबी जैसी बीमारी तेजी से फैलती है।
- खुले में न रहने के कारण कैदियों की रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है।
- वहीं दूसरी ओर जेलों में सुधार के लिए गठित मुल्ला कमेटी की सिफारिशें 25 साल बाद भी धूल फांक रही हैं।
- इसमें जेल नियमावली में संशोधन के साथ ही कैदियों के पुर्नवास से संबंधित सिफारिशें की गई थीं, जिन्हें आज तक लागू नहीं किया गया। (prisoners deaths)
- ऐसे में जेल को कैसे हाईटेक बनाया जा सकता है ये गौर करने वाली बात है।
मौतों का आंकड़ा
वर्ष मौतें
2012 360
2013 358
2014 339
2015 359
2016 412
2017 188
(नोट: आंकड़ा एक जनवरी से जुलाई 2017 तक का है।)
वर्ष मौतें
2012 360
2013 358
2014 339
2015 359
2016 412
2017 188
(नोट: आंकड़ा एक जनवरी से जुलाई 2017 तक का है।)
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