21 माह बाद खत्म हुआ सीता का वनवास, ये बने हनुमान #NareshParas



मानसिक आरोग्यशाला में बिता रही थी गुमनामी का जीवन
  • मृत मान पति ने कर ली दूसरी शादी
  • आरोग्यशाला में ही दिया बेटे को जन्म
रामायण के धर्म युद्ध में हनुमान जी प्रभु श्रीराम के सहयोगी बने। उन्हीं मदद से माता जानकी का पता लग पाया था। इसके बाद प्रभु श्रीराम ने वानर सेना के साथ लंका पर विजय प्राप्त करके सीता माता को वापस प्राप्त किया। इस कलयुग में भी कहानी कुछ ऐसी ही है लेकिन इस बार हनुमान श्रीराम के लिए नहीं बल्कि सीता के लिए बने। एक ऐसे हनुमान  जिन्होंने सीता के परिवार को खोजा। 
बिता रही थी गुमनामी का जीवन
जी हां हम बात कर रहे हैं आगरा के मानसिक स्वास्थ्य संस्थान की। यहां सीता नाम की एक महिला ढाई साल से बेबसी का और गुमनामी का जीवन बिता रही थी। इसी आरोग्यशाला में उसने एक बच्चे को जन्म दिया। बच्चा अनाथालय में रह रहा था और मां मानसिक आरोग्यशाला में अपना जीवन बर्बाद होते देख रही थी। उसने अपना पता संस्थान को बताया लेकिन संस्थान के कर्मचारी सीता का घर खोजने में नाकाम रहे। सीता भी इसे भाग्य की विडंबना समझ कर चुपचाप बैठ गई। बच्चे का अनाथालय में पालन-पोषण होने लगा। इसी बीच आगरा के चाइल्ड राइट एक्टिविस्ट नरेश पारस जब अनाथालय में बच्चे से मिले और उसकी मां के बारे में जानकारी की तो बताया गया कि बच्चे की मां मानसिक आरोग्यशाला में है। वह अपने बच्चे की परवरिश नहीं कर सकती है इसलिए उसे अनाथालय में रखा गया है। इसके बाद नरेश पारस ने मानसिक स्वास्थ्य संस्थान में जाकर सीता से मुलाकात की। सीता स्वस्थ हो चुकी थी लेकिन घर का पता सही नहीं मालूम होने के कारण वह घर नहीं जा पा रही थी। उसने अपने बच्चे को भी न देखा था। सीता ने नरेश पारस को बताया कि वह बिहार के मधुबनी जिले की रहने वाली है। वह रास्ता भटक कर बिहार से नोएडा पहुंच गई थी। नोयडा पुलिस ने उसे लावारिस अवस्था में पकड़ा था और कोर्ट के आदेश पर उसे मानसिक स्वास्थ्य संस्थान आगरा में निरुद्ध करा दिया गया।
मानसिक आरोग्यशाला में दिया बच्चे को जन्म
 जब वह मानसिक स्वास्थ्य संस्थान में आई थी तो वह गर्भवती थी। संस्थान में ही उसने एक सुंदर बच्चे को जन्म दिया था। वह अपने बच्चे को लेकर अपने घर जाना चाहती है। बस इतना सुनकर नरेश पारस सीता के परिवार को खोजने में जुट गए। उन्होंने अपने प्रयासों से सीता के परिवार को तलाशना शुरू कर दिया उन्होंने सोशल मीडिया से भी मदद मांगी लेकिन कोई सकारात्मक परिणाम नहीं मिल सका। बिहार सरकार को भी चिट्ठियां लिखीं। इसके बाद नरेश पारस ने बिहार के डाक विभाग से संपर्क किया। डाक विभाग के माध्यम से सीता के परिवार को आखिरकार खोज ही लिया। सीता के पति और भाइयों ने सीता के वापस आने की उम्मीद छोड़ दी थी। सीता के भाई ने बताया कि सीता मंदबुद्धि थी। वह भटक कर घर से चली गई। काफी खोजबीन की पुलिस में शिकायत दर्ज कराई लेकिन  पुलिस ने गुमशुदगी दर्ज नहीं की। वह अपने स्तर से सीता को तलाश रहे थे। वह पटना, दरभंगा, अंबाला, दिल्ली, हरिद्वार आदि लगभग बीस शहरों की खाक छान चुके थे लेकिन सीता का कोई पता नहीं चल सका था। इसके बाद बिहार के तमाम छोटे-बड़े जिलों में खोजबीन की गई लेकिन सीता नहीं मिली। तमाम मंदिर, मठ, गुरुद्वारे, दरगाह आदि धार्मिक स्थलों पर खोजा गया और उसकी सलामती की दुआएं की लेकिन हर तरफ से निराशा ही मिली। पति ने मृत मानकर दूसरी शादी रचा ली। 
ऐसे मिला सीता को परिवार
जब सीता के भाइयों को सीता की सलामती की खबर मिली तो उनकी खुशी का ठिकाना ना रहा। बिना समय गवाएं सीता का भाई बिहार से तथा सीता की बहन हरियाणा से आगरा लेने आ गए। उधर नरेश पारस ने न्यायालय के माध्यम से सीता की रिहाई के आदेश कराएं। उसको अनाथालय से उसका बच्चा वापस दिलाया और सीता को उसके परिवार के साथ वापस घर भिजवा दिया। सीता अपने परिवार में पहुंचकर बहुत खुश थी। सीता के भाई और बहन नरेश पारस का शुक्रिया अदा करते नहीं थक रहे थे। वह बार-बार पर कह रहे थे कि हमने रामायण में सीता की खोज के लिए हनुमान का नाम सुना था लेकिन इस कलयुग में सीता के परिवार को खोजने के लिए नरेश पारस भी एक हनुमान से कम नहीं हैं। यह वास्तविक कहानी आपको कैसी लगी हमें जरूर बताएं हमें आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा

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